लखनऊ,समाचार10 India-लेखक अमित नायब। बच्चों का काम स्कूल जाना है न कि मजदूरी करना। बाल मजदूरी बच्चों से स्कूल जाने का अधिकार छीन लेती है और वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं । बाल मजदूरी शिक्षा में बहुत बड़ी रुकावट है, जिससे बच्चों के स्कूल जाने में उनकी उपस्थिति और प्रदर्शन पर खराब प्रभाव पड़ता है।
खेलने और पढ़ने की उम्र में इतना ढेर सारा काम क्यों?
सरकारी हर साल 12 जून को बाल श्रम दिवस के रूप में मनाते हैं लेकिन सवाल या उठता है कि बाल श्रम रुक क्यों नहीं रहा है। उसकी सबसे बड़ी वजह है हम और आप और इनके माता – पिता इनकी वजह से बाल श्रम को बढ़ावा मिलता है जब हम रास्ते में भीख मांग रहे बच्चे या कहीं ठेले पर,या किसी दुकान पर, गाड़ी बनाने की दुकान पर, किराना की दुकान पर या फिर ढाबे पर हम जाते हैं तो वहां पर हमें छोटी- छोटी उम्र के बच्चे जब हमें काम करते देखते है तो हम मालिकों से सवाल नहीं करते है क्यों ?आप इस छोटी उम्र में बच्चों से काम ले रहे है, जब हम सब सवाल करेंगे तो उन्हें जवाब देना पड़ेगा और उसके बाद हो सकता है कि उनको शर्मिंदगी महसूस हो उसके बाद भी अगर नहीं मानते तो उन्हें बाल श्रम अधिनियम की जानकारी दें।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल मजदूरों की संख्या 1.01 करोड़ है जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां हैं। दुनिया भर में कुल मिलाकर 15.20 करोड़ बच्चे – 6.4 करोड़ लड़कियां और 8.8 करोड़ लड़के बाल मजदूर होने का अनुमान लगाया गया है अर्थात दुनिया भर में प्रत्येक 10 बच्चों में से एक बच्चा बाल मजदूर है।
बाल श्रम को रोकने के लिए सरकार की शिक्षा पर प्रमुख पहल
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) : संविधान में बताए गए अनुच्छेद 21ए में शिक्षा को प्रत्येक बच्चे के मूल अधिकार के रूप में शामिल किया गया है और 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध किया गया है। बाल श्रम (निषेध और धार्मिक) अधिनियम (1986): यह अधिनियम खतरनाक परमाणु हथियार और शौचालय में 14 साल से कम उम्र के बच्चों और 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए आय पर प्रतिबंध लगाता है।
फैक्ट्री एक्ट (1948): यह किसी भी खतरनाक काम में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए काम पर प्रतिबंध लगाता है और केवल गैर-खतरनाक काम में काम करने की अनुमति वाले सामान (14 से 18 साल) के लिए काम लंबा और दशाओं को नियंत्रित करता है। राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987): इसका उद्देश्य बाल श्रम पर प्रतिबंध एवं राष्ट्रीय बाल श्रम माध्यम से बाल श्रम का विकास करना, बच्चों एवं उनके परिवार के लिए कल्याण एवं विकास कार्यक्रम प्रदान करना एवं कार्यशील बच्चों के लिए शिक्षा एवं संकल्प सुनिश्चित करना है।
बाल श्रम के मुद्दे से जुड़े लोगों की सकारात्मक ऊर्जा ने अन्य क्षेत्रों में बदलाव को बढ़ावा तो दिया परन्तु उतना प्रभाव नहीं पड़ा जितना पढ़ना चाहिए था।समय बीतने के साथ गांव के समुदाय में जल, जमीन, शिक्षा और सेहत को पहले स्थानीय स्तर पर फिर जरूरत पड़ने पर उच्च स्तर तक ले जाने पर ध्यान देना पड़ेगा।
साल 2011 से बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति करने के बाद aavf ने बच्चों की शिक्षा के मुद्दे पर ध्यान देना शुरू किया। aavf ने गरीब लोगों की पहुंच सरकारी संस्थाओं और एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत चलने वाली योजनाओं शिक्षा का अधिकार,बाद में उन्हीं बच्चों की पोषण की जरूरतों की निगरानी की और देख-रेख के मुद्दों को उठाया। अधिकार और अवसरों का अभाव: बाल श्रमिक बच्चों को उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भागीदारी के अधिकारों से वंचित किया जाता है, जिससे उनके भविष्य के अवसर और सामाजिक विशेषाधिकार सीमित हो जाते हैं।
शिक्षा को समाज के कमजोर वर्गों के हाथ में हथियार के रूप में दिया गया है जिससे वे समाज द्वारा दिये गए अवसरों तक पहुंच बनाकर सशक्त बनें। बंधुआ मजदूर बने अभागे बच्चे शिक्षित होकर जीवन पर अपना नियंत्रण रख सकते हैं। अपने विश्वास और करियर को सुधार सकते हैं।
अतः सर्वप्रथम शिक्षित करो और खुद भी शिक्षित बनो।