ह्यूमन-वाइल्डलाइफ इंटरेक्शन का मानव आबादी व वन्यजीवों दोनों पर पड़ रहा असर

मानव वन्यजीव सम्पर्क पर सार्वजनिक धारणा को लेकर परिचर्चा का आयोजन

by Vimal Kishor

लखनऊ,समाचार10 India। ह्यूमन-वाइल्डलाइफ इंटरेक्शन भारत में एक ऐसा मुद्दा है जो लगातार गंभीर होता जा रहा है, इस समस्या का असर मानव आबादी और वन्यजीवों दोनों पर पड़ रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और शहरों के विस्तार ने वन्यजीवों के रहने के प्राकृतिक स्थानों को समाप्त कर दिया है। इसकी वजह से जानवरों को खाने और रहने का सुरक्षित स्थान पाने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। यह समस्या खास तौर पर घने जंगलों वाली जगहों और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में और भी गंभीर है, जहां मनुष्य और वन्यजीव एक-दूसरे के करीब रहने के लिए मजबूर हैं।

यह तथ्य आज यहां महानगर स्थित हार्नर कालेज में मानव वन्यजीव सम्पर्क पर सार्वजनिक धारणा को आकार देने को लेकर हुये पैनल चर्चा में सामने आये। मीडिया के साथ हुयी इस परिचर्चा में देवव्रत सिंह, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, डॉ. सौगत साधुखान, भारतीय विद्यापीठ यूनिवर्सिटी, पुणे, रोहित झा, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी, सुनील हरसाना, कोएग्जिस्टेंस कंसोर्टियम फेलो व विशाखा जॉर्ज, पीपुल्स आर्चीव ऑफ रूरल इण्डिया मौजूद थे। इस परिचर्चा में हाल में उत्तर प्रदेष के बहराइच में भेड़िये के हमलों का भी मामला उठा।

जिसको लेकर वक्ताओं ने कहा कि मानव-वन्यजीव संघर्ष लगातार गंभीर होता जा रहा है। यह संघर्ष बदलती परिस्थितियों में सह-अस्तित्व की गंभीर होती समस्या की तस्वीर पेश कर रहा है। हालांकि समुदाय को यह पता है कि एक बेहतर ईकोसिस्टम को बनाए रखने में भेड़ियों की भूमिका बेहद अहम है, लेकिन उनकी आजीविका को लेकर जो खतरा सामने खड़ा है, वह अक्सर प्राथमिकता का विषय बन जाता है।

भारत में एचडब्लूआई पर असरदार तरीके से ध्यान देने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। इस परिचर्चा का उद्देश्य भारत में मानव-वन्यजीव संबंधों के उभरते परिस्थितियों पर बेहतर समझ विकसित करना था। इसमें जो प्रमुख कमियां रह गई हैं उनकी पहचान की जाएगी, साथ ही कार्रवाई योग्य समाधान तलाशे गये। यह चर्चा गतिशील और समावेशी रही, यहां वक्ताओं और पत्रकारों दोनों को इस चर्चा में समान रूप से योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

इसके अलावा वास्तविक जीवन की कहानियों और जमीनी स्तर की केस स्टडीज़ के साथ, इस सैशन में विभिन्न हितधारकों पर एचडब्लूआई के अलग अलग असर का पता लगाया गया। इसमें संघर्ष बढ़ती घटनाओं के असली कारणों को जानने का भी प्रयास किया गया, साथ ही इन चुनौतियों से निपटने में जमीनी स्तर के सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन की महत्वपूर्ण भूमिका को भी समझने की कोशिश की गयी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आम लोगों की सोच को दिशा देने तथा मानव एवं वन्यजीव के सह-अस्तित्व की जरूरत को लेकर जागरूकता बढ़ाने में मीडिया की अहम भूमिका को उजागर करना भी रहा।

You may also like

Leave a Comment