100 वर्ष पूर्व ‘पिछड़ा’ शब्द नहीं था

देश में न कानून का डर, न शासन का भय—कुछ भी बोल दो!

by Vimal Kishor

 

लखनऊ,समाचार10 India। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, अवध प्रदेश के अध्यक्ष  अमरेन्द्र सिंह परमार ने प्रेस वार्ता में कहा कि वोट की राजनीति के चलते जातियों पर चोट करने की नीति लगातार अपनाई जा रही है। भारत में महापुरुषों, धार्मिक ग्रंथों, देवी-देवताओं और इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर क्षत्रिय समाज को निशाना बनाया जा रहा है।प्रदेश अध्यक्ष ने मीडिया से कहा कि राज्यसभा की अपनी गरिमा होती है। हेट स्पीच देकर कुछ भी बोल देना और फिर खेद प्रकट कर देना अब नहीं चलेगा। छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा सांगा पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों से देश के क्षत्रिय समाज में गहरा आक्रोश है। इसी के मद्देनज़र, 22 जून को लखनऊ में भव्य क्षत्रिय महाकुंभ आयोजित किया जाएगा।

क्षत्रिय समाज किसी भी प्रकार की अनुचित टिप्पणी को सहन नहीं करेगा। राज्यसभा जैसे गरिमामयी सदन में क्षत्रियों के महापुरुषों का अपमान निंदनीय है। इस तरह की भड़काऊ और आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए दोषी व्यक्ति के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाए और उसे राज्यसभा से बर्खास्त कर विधिक कार्यवाही इस पूरे घटनाक्रम को लेकर महासभा के प्रमुख पदाधिकारियों में भी गहरा आक्रोश व्याप्त है। उनका मानना है कि हिंदू समाज और विशेष रूप से क्षत्रिय समुदाय को राजनीतिक लाभ के लिए बार-बार अपमानित किया जा रहा है, जिसे किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा आज से 100 वर्ष पूर्व ‘पिछड़ा’ शब्द का कोई विशेष प्रचलन नहीं था।

यदि आप किसी व्यक्ति से पूछते कि वह ब्राह्मण है, और यदि वह कहता ‘नहीं’, तो अगला प्रश्न होता—क्या वह वैश्य है? फिर यदि उत्तर ‘नहीं’ आता, तो अगला प्रश्न होता—क्या वह शूद्र है? और यदि इसका उत्तर भी ‘नहीं’ होता, तो वह हिंदू समाज में क्षत्रिय ही माना जाता। जिन्होंने इतिहास में राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए, अपना धर्म, कर्तव्य और फर्ज़ निभाया, आज वे ‘राजपूत’ और ‘क्षत्रिय’ मात्र पर्यायवाची शब्द बनकर रह गए हैं। लेकिन समाज में आज भी स्वर्णकार, कुमावत, जाट, गुर्जर, अहीर, लोधा, शाक्य, मौर्य, कुर्मी, बघेल, रावत आदि जातियां क्षत्रिय टाइटल का उपयोग कर रही हैं।

राजनीति और स्वार्थी नेताओं ने इन्हें ‘पिछड़ा’ बना दिया, और अब ‘पिछड़ेपन’ के नाम पर राजनीति हो रही है। शूद्र वर्ण का भी इसी तरह विखंडन किया गया और कर्म के आधार पर विभिन्न जातियों को उसमें धकेल दिया गया। पिछले 75 वर्षों में ‘संविधान’ और ‘लोकतंत्र’ जैसे शब्दों की आड़ में हिंदू समाज को विखंडित और कमजोर कर दिया गया है। सत्ता के भूखे, हुकूमत के लालची, धन और सम्मान के चाहने वाले चंद लोग सनातन धर्म के भोले-भाले, दयालु, परोपकारी और परमार्थी हिंदू समाज को जातिवाद की आंधी में बहाने में सफल हो रहे हैं।

करोड़ों हिंदुओं को चंद लोग अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं और सत्ता हासिल कर देशविरोधी, हिंदू-विरोधी, नैतिकता और राष्ट्रीयता विरोधी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। आज देश में भ्रष्टाचार में डूबे कुछ नेता ‘पिछड़ी प्रवृत्ति’ को बढ़ावा दे रहे हैं। अपराधियों के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, लेकिन राष्ट्र-विरोधी तत्व खुलेआम आतंक मचाते रहते हैं और जनता बस ‘नई बात 9 दिन, ज्यादा सोचो तो 11 दिन’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है।

पिछड़े और दलित भाइयों, तुम्हारे नाम पर राजनीति करने वालों से सावधान हो जाओ! जब नागपुर जैसे शहर में, जहां 90% हिंदू आबादी है, दंगाइयों ने कारों और गाड़ियों को तोड़ा, जलाया, महिलाओं से दुर्व्यवहार किया—तब उन्होंने यह नहीं देखा कि यह गाड़ी किसी पिछड़े की है, किसी अति पिछड़े की है या किसी दलित की है। भाइयों, ‘पिछड़ा’ और ‘दलित’ जैसे शब्दों में मत उलझो—सिर्फ और सिर्फ ‘हिंदू’ बनो! बेटी या बेटे की शादी करते समय जाति देखना, लेकिन अगर हिंदू समाज ने अभी भी जातिवाद से ऊपर उठकर एकता नहीं दिखाई, तो कहीं ऐसा न हो कि हिंदू समाज को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया जाए।

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