आओ एक संकल्प लें क्योंकि आज गुरुपूर्णिमा है

by Vimal Kishor

समाजसेवक कृपा शंकर यादव

वाराणसी:समाचार10 India। जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज गुरुपूर्णिमा है। आज के दिन हर शिष्य अपने गुरु का चरण वन्दन कर आशीर्वाद लेने की विशेष रुचि रखता है, हमारे सनातन धर्म में आज का विशेष महत्व है। समय के इस बदलते परिवेश में गुरुजनों की भी यही मनोकामना है कि उनके शिष्य सहित सम्पूर्ण मानव समाज विश्व व्यापी कोरोना महामारी में स्वस्थ और सुरक्षित जीवन का लाभ प्राप्त कर सके।

गुरुपूर्णिमा के दिन अपने गुरुजनों के प्रति श्रद्धा के साथ एक-दूसरे को शुभकामना देने का भी प्रचलन आजकल आमतौर पर देखने को मिल रहा है। लेकिन क्या शुभकामना और गुरु के चरण वन्दन मात्र से ही वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांतों की स्थापना हो सकेगी……. नही।

यह सनातन संस्कृति की ही परम्परा रही है कि शिष्य जब कोई संकल्प लेता है तो गुरु ही उस संकल्प को सफलता तक पहुचाने में शिष्य के सहभागी होते हैं। इसीलिए शिष्य के प्रति उनके गुरु पूज्यनीय होते हैं।

इस विश्व व्यापी कोरोना महामारी की दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी के कारण लोगों के मरने के सिलसिले को भी हम सभी ने न चाहते हुए भी देखा। चारो तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई थी। लोग आक्सीजन के लिए हर तरह का प्रयास कर रहे थे। लेकिन अपनों की जिन्दगी बचा पाने में अधिकांश लोगों को असफलता ही हाथ लगी।

आज गुरुपूर्णिमा है हम सभी शिष्यों को आज के दिन पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी संकल्पित होने की आवश्यकता है। जैसा कि बदलते समय की मांग भी यही है। हमे यह नही भूलना चाहिए कि एक पीपल का पेड़ औसतन प्रतिदिन 227 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जबकि एक आदमी को प्रतिदिन 550 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। इस हिसाब से एक आदमी एक दिन में दो पीपल के पेड़ का आक्सीजन ग्रहण करता है। इस लिहाज से देखा जाए तो पर्यावरण संरक्षण आज के समय की प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए। हमें इस बात को भी नजरअंदाज नही करना चाहिए कि पेड़-पौधो को आक्सीजन के प्रमुख स्त्रोत के साथ-साथ वायु प्रदूषण नियंत्रण का प्रमुख प्राकृतिक साधन माना जाता है। समय की मांग के अनुरूप “आओ एक पौधा करें राष्ट्र को समर्पित” अभियान के सार्थक उद्देश्यों से जुड़कर ही प्रर्यावरण संरक्षण के वास्तविक लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है।

आज गुरुपूर्णिमा के अवसर पर हम मनुष्यों को यह संकल्प लेना चाहिए कि अपने जीवन मे एक पीपल का पेड़ लगाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं को संकल्पित होने की आवश्यकता है। तभी हम और हमारा समाज बचेगा तभी एक नए रूप में वसुधैव कुटुम्बकम की स्थापना हो सकेगी।

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