
लखनऊ,समाचार10 India। सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन एंड रैगुलेशन ऑफ ऑनलाईन गेमिंग एक्ट (प्रोगा) 2025 के तहत भारत में रियल-मनी गेमिंग (आरएमजी) पर लगे प्रतिबंध को चुनौती दी गई है, जिसकी सुनवाई में एक याचिकाकर्ता ने इस प्रतिबंध से उनकी आजीविका पर पड़े वाले गंभीर प्रभाव के बारे में एक बहुत शक्तिशाली तर्क दिया है। याचिकाकर्ता एक प्रोफेशनल ऑनलाईन गेमर है। उसने कोर्ट को बताया कि ऑनलाईन स्किल-बेस्ड गेमिंग उनकी आय का प्राथमिक स्रोत और उनका अपना गेमिंग व्यवसाय शुरू करने का माध्यम था। इन प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाए जाने से न केवल उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बाधित हुई है, बल्कि उन लाखों गेमर्स का भविष्य अंधेरे में चला गया है, जो अब असंगठित ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स की ओर पलायन कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने अपने तर्क में बताया कि इस प्रतिबंध से भारत के बढ़ते घरेलू गेमिंग उद्योग और इसके गेमर्स पर क्या प्रभाव पड़ा है। प्रोगा लागू होने के बाद ज्यादातर आरएमजी ऑपरेटर्स ने काम करना बंद कर दिया है, जिससे भारत में वैध घरेलू प्लेटफॉर्म्स की गंभीर कमी उत्पन्न हो गई है। इस स्थिति में खिलाड़ियों के पास बहुत कम विकल्प बचे रह गए हैं और उन्हें गेम्स तथा अपनी रोजी-रोटी जारी रखने के लिए ऑफशोर असंगठित प्लेटफॉर्म्स की ओर पलायन करना पड़ रहा है। ये ऑफशोर प्लेटफॉर्म भारत के वैधानिक और कानूनी दायरे के बाहर काम करते हैं, जिससे यूज़र्स को धोखा-धड़ी, लत, बेईमानी का शिकार होने तथा अपने पैसे गँवा देने का अत्यधिक जोखिम है, जिसके लिए उन्हें कोई कानूनी निवारण भी प्राप्त नहीं हो सकेगा।
अन्य याचिकाकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि गेम्स ऑफ स्किल (कौशल पर आधारित गेम्स) और गेम्स ऑफ चांस (किस्मत पर आधारित गेम्स) के बीच कानूनी अंतर को बनाए रखना बहुत आवश्यक है। उन्होंने इस प्रतिबंध को चुनौती देते हुए कहा कि कौशल पर आधारित गेम्स पर प्रतिबंध संविधान की धारा 19 (1) (जी) का उल्लंघन है, जिसके अंतर्गत नागरिकों को किसी भी पेशे को अपनाने, या कोई भी व्यवसाय, कारोबार या व्यापार करने का अधिकार दिया गया है।
संजय सहाय, सायबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट एवं पूर्व एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, कर्नाटक ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को प्रोग एक्ट, 2025 की संवैधानिक वैधता पर एक विस्तृत जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। कानूनी रूप से यह तय है कि जब कौशल का किस्मत पर वर्चस्व हो, तो यह जुए से अलग होगा। इस कानूनी चर्चा का मुख्य आधार किस्मत और कौशल में अंतर है। इसलिए कौशल पर आधारित गेम्स को विभिन्न कोर्ट्स और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। हानिकारक व्यक्तिगत परिणामों के आधार पर इन दोनों को समान नहीं माना जा सकता है। जुए के विपरीत कौशल पर आधारित गेम्स के लिए संज्ञानात्मक क्षमता, रणनीति और अभ्यास की जरूरत होती है, जबकि जुआ पूरी तरह से किस्मत पर आधारित होता है। पैसे से गेम की प्रकृति में कोई मूलभूत बदलाव नहीं आता है, जो इस अधिनियम की प्राथमिक चिंता प्रतीत होती है।’’

