समाचार10 India,रिपोर्ट. शाश्वत तिवारी। हिंद महासागर सम्मेलन का 7वां संस्करण ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में शुरू हुआ, जिसमें भारत की ओर से विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर शामिल होंगे। दो दिवसीय सम्मेलन के इस संस्करण का विषय ‘एक स्थिर और सतत हिंद महासागर की ओर’ है। विदेश मंत्री जयशंकर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करेंगे। विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा सम्मेलन में 22 से अधिक देशों के मंत्रियों और 16 देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल शामिल होंगे। इसके अलावा 6 बहुपक्षीय संगठनों के प्रतिनिधि भी इसका हिस्सा बनेंगे।
मंत्रालय के अनुसार, सिंगापुर में 2016 में अपनी शुरुआत के बाद से पिछले कुछ वर्षों के दौरान सम्मेलन ने क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (सागर) के उद्देश्य से क्षेत्रीय सहयोग की संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए क्षेत्र के देशों तथा प्रमुख समुद्री भागीदारों को एक आम मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह सम्मेलन हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के लिए एक प्रमुख परामर्शदात्री मंच है, जो भारत फाउंडेशन के सहयोग से विदेश मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। सम्मेलन क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों और प्रमुख समुद्री भागीदारों को एक साथ लाने की दिशा में काम करता है, ताकि क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास के लिए सहयोग की संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया जा सके। लिहाजा पिछले कुछ वर्षों से ‘सर्व-समावेशी विकास’ तथा ‘क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास’ भारत की कूटनीति का प्रमुख हिस्सा रहा है, इसलिए सम्मेलन में भारत की भूमिका काफी बढ़ जाती है।
वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र व्यापारिक और रणनीतिक तौर पर भी भारत के लिए काफी अहम है, इसलिए भारत हिंद महासागर क्षेत्र के साथ ही हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र पर भी अपनी पकड़ लगातार मजबूत कर रहा है, जिसे वह एक मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र के तौर पर देखता है। भारत की लगातार कोशिश है कि इन क्षेत्रों में एक ऐसा माहौल बना रहे, जिससे कोई भी देश अपने आक्रामक रवैये के जरिए विस्तारवादी मंशा को पूरा न कर पाए।
चूंकि हिंद महासागर क्षेत्र इंडो-पैसिफिक में अधिक भू-रणनीतिक महत्व रखता है, इसलिए भारत नेतृत्व की स्थिति बनाए रखने के लिए अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है। भारत के व्यापार का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रित है, वहीं हिंद महासागर के माध्यम से भारत न केवल अपना अधिकतर कारोबार करता है, बल्कि यह उसके लिए प्रमुख ऊर्जा स्रोत भी है।