योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के अबतक के मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक सरलता और सहजता को भी किया है कलंकित

by Vimal Kishor

 

कृपा शंकर यादव
समाजसेवी

26 जनवरी 1950 को देश में गणतन्त्र लागू होने के पश्चात उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत बने। जिनका पहला कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 20 मई 1952 तक व दूसरा कार्यकाल 20 मई 1952 से 27 दिसम्बर 1954 तक रहा। ततपश्चात सम्पूर्णानन्द और कमलापति त्रिपाठी लगातार दो-दो बार, चन्द्रभानु गुप्ता लगातार दो बार सहित चार बार, नारायण दत्त तिवारी चार बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वहीं 14 मार्च 1967 को सुचेता कृपलानी के रूप में उत्तर प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली। चौधरी चरण सिंह, हेमवंती नन्दन बहुगुणा, कल्याण सिंह दो-दो बार, मुलायम सिंह यादव तीन बार, मायावती चार बार सहित त्रिभुवन नारायण सिंह, राम नरेश यादव, बनारसी दास, विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्री पति मिश्रा,वीर बहादुर सिंह, राजनाथ सिंह, राम प्रकाश गुप्ता अखिलेश सिंह यादव का एक-एक बार मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल रहा।

उत्तर प्रदेश में कुल 10 बार राष्ट्रपति शासन भी लगा। लेकिन अपनी सरल, सहज और सारगर्भित राजनीति के लिए देश ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में जाना जाने वाला उत्तर प्रदेश कभी राजनीतिक रूप से अस्थिर नही हुआ और न ही देश के राजनीतिक गलियारों में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक महत्ता कभी कम हुई। क्रमशः इन सभी मुख्यमंत्रियों ने राजनीति के मंच पर अपने-अपने धर्म निरपेक्ष और संवैधानिक नेतृत्व से आम जनमानस को सुरक्षा और अपनेपन का विश्वास दिलाते हुए उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक बहुमुखी, विकासशील और विश्वसनीय आयाम स्थापित करने का साहसिक प्रयास किया था।

वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पश्चात भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत में आई और पूर्वांचल में कट्टरवादी हिन्दुत्व का चेहरा माने जाने वाले गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को उस समय के उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रामनाईक ने लखनऊ के काशीराम स्मृति उपवन में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार एक साथ दो उप मुख्यमंत्रियों की भी सौगात मिली। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही उत्तर प्रदेश ही नही बल्कि सम्पूर्ण देश मे यह बात प्रचारित और प्रसारित होने लगी कि उत्तर प्रदेश में रामराज्य आ गया है।

लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पश्चात उसी वर्ष 2017 के सोनभद्र के उम्भा नरसंहार में मारे गए आदिवासियों के परिवार वालों को न्याय दिलाने के दिखावे के नाम पर शासन द्वारा उत्तर प्रदेश कैडर के बेहद ईमानदार आईपीएस अधिकारी जे. रविन्द्र गौंड की अध्यक्षता में एक एसआईटी गठित की गई।

जिस एसआईटी ने कड़ी मेहनत करते हुए लगभग साढ़े तीन सौ पन्नो की निष्पक्ष जांच रिपोर्ट तैयार की। जिस जाँच रिपोर्ट को एसआईटी ने 29 फरवरी वर्ष 2020 को शासन को सौप दिया। लेकिन आज तक उस एसआईटी फाइल के धूल फांकने के साथ योगी शासन द्वारा आदिवासियों को न्याय नही मिला। उसी तरह वर्ष 2017 में ही गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन की कमी के कारण 33 मासूम बच्चों की मौत के बाद प्रशासनिक दुर्व्यवस्था की चर्चा से सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश आहत हुआ था।

सन 2017 में ही 4 जून को उन्नाव जिले की एक 17 वर्षीय लड़की से बलात्कार का मामला हुआ और आरोप योगी आदित्यनाथ के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर, पुलिसकर्मियों और उसके भाई सहित गुर्गो पर लगा। न्याय की भीख मांगने के गुहार के साथ 8 जुलाई वर्ष 2018 को बलात्कार पीड़िता ने अपने पिता के साथ मुख्यमंत्री आवास के बाहर पहुँच प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के बाहर न्याय पाने की उम्मीद से प्रदर्शन कर रही बलात्कार पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में हुई मौत ने भी योगी आदित्यनाथ के रामराज्य सरीखे सत्ता संचालन के दावों को झुठला दिया।

हाथरस की घटना में भी पुलिस, प्रशासन सहित उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यवाही करने की नीति और नियति से लोगो को रामराज्य सरकार का दावा करने वाली योगी आदित्यनाथ की सरकार से मायूसी ही हाथ लगी। भारत सरकार के अधीनस्थ काम करने वाली राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने भी उत्तर प्रदेश के रामराज्य युक्त सत्ता संचालन सम्बन्धित सभी दावों की पोल खोलते हुए उत्तर प्रदेश को ही अपराध युक्त राज्य का खिताब दे दिया।

अब तक के मुख्यमंत्रियों के सरल, सहज और प्रासंगिक राजनीतिक नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की जो जनता स्वयं को सुरक्षित, समृद्धिशाली, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में विकास के प्रति अग्रसर महसूस करती थी आज वहीं जनता उसी उत्तर प्रदेश के भ्रष्टाचार युक्त प्रशासनिक व्यवस्था और दिखावे के रामराज्य युक्त सत्ता से असहज, असुरक्षित और भविष्य ही नही बल्कि वर्तमान के प्रति भी तरह-तरह के विषमताओ और अंदेशाओ से घिरी हुई महसूस कर रही है। विश्वव्यापी कोरोना महामारी का पहला दौर रहा हो अथवा दूसरा ही क्यों न रहा हो.. प्रशासनिक अदूरदर्शिता और दुर्व्यवस्थाओं से भी लोगो को अनेकों बार असहजता का सामना करना पड़ा।

ऊपर से जो जिस भाषा में समझेगा उसे उसी भाषा में समझा दिया जाएगा और ठोक देंगे जैसे अमर्यादित राजनीतिक प्रहारों से उत्तर प्रदेश के अब तक के मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक व सामाजिक नेतृत्व का पलीता लगाने वाली झूठी रामराज्य युक्त सरकार अपने इन्ही दुर्व्यवस्थायुक्त प्रशासनिक व शासनिक क्रियाकलापों के दम पर दुबारा सत्ता में आने का अहंकारी दावा भी कर रही है।

जबकि आज तक के उत्तर प्रदेश के किसी भी मुख्यमंत्री ने धर्म निरपेक्षता सहित हर तरह के जनहित और राज्यहित में कार्य करते हुए भी ऐसे अहंकारी अंदाज से दुबारा सत्ता में आने का कभी दावा नहीं किया। देखने वाली बात यह होगी कि जिस उत्तर प्रदेश में महज सच को ट्वीट करने पर सात मुकदमे झेल रहा सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी भी रामराज्य युक्त सत्ता के क्रियाकलापों से असहज और आक्रोशित हो सरकार के गलत नीतियों के खिलाफ लोगों को चिरनिद्रा से जगाने का प्रयास कर रहा हो उस उत्तर प्रदेश की जनता झूठी रामराज्य और झूठे विज्ञापन युक्त उत्तर प्रदेश सरकार को दुबारा सत्ता के सिंहासन पर बैठाती है या फिर वनवास का रास्ता दिखाती है।

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