योगी शासन में अपराधियों के गोलियों से दम तोड़ती सूबे की पत्रकारिता

by Vimal Kishor

 

कृपा शंकर यादव
समाजसेवी

19 मार्च सन 2017 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सानिध्य में लखनऊ स्थित काशीराम स्मृति उपवन में उस समय के तत्कालीन राज्यपाल रामनाईक द्वारा शपथ दिलाने के उपरान्त उत्तर प्रदेश की सत्ता गोरखपुर के तत्कालीन लोकसभा सदस्य और पूर्वांचल के कद्दावर हिन्दू चेहरा समझे जाने वाले भगवाधारी योगी आदित्यनाथ को प्राप्त होती है।

उस दौरान मंच पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति इस बात का एहसास करा रही थी कि पहली बार महज 26 साल की उम्र में देश के लोकसभा में पहुँचने वाले लगातार पाँच बार के सांसद रहे योगी आदित्यनाथ के शासनिक नेतृत्व क्षमता के प्रति स्वयं नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश की जनता पूरी तरह से आश्वस्त और विश्वस्त थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ स्वयं योगी आदित्यनाथ भी जनता से मिले प्रचण्ड बहुमत स्वरूप आशीर्वाद और सहयोग से इतने गदगद थे कि योगी आदित्यनाथ ने तो अपने शुरू होने वाले शासनिक पारी को रामराज्य तक की संज्ञा दे दी। सत्ता परिवर्तन के पश्चात भगवा के प्रति हर तरफ लोगो का झुकाव भी तेजी से बढ़ते हुए देखा जाना आम बात हो गयी थी। और यह भी ऐतिहासिक सच है कि सत्ता परिवर्तन लोकतन्त्र की सरलता, सहजता और खूबसूरती का सुन्दर अध्याय होता है। समय-समय पर सत्ता का परिवर्तन और हस्तांतरण आम जनमानस सहित प्रशासनिक व्यवस्थाओ के लिए भी लाभदायक सिद्ध होता है।

फिलहाल भगवा वस्त्र धारण किये हुए योगी आदित्यनाथ ने अपने शासनकाल को रामराज्य की संज्ञा देते हुए अपने मुख्यमंत्रित्व काल की शुरुआत की। लेकिन शायद नियति को कुछ और ही मंजूर रहा होगा इसीलिए भगवामय हुए वातावरण में सूबे में हर ओर पत्रकारों पर एक ओर जहाँ अपराधियों के लाठी-डण्डो से हमला किये जाने की खबरें आने लगी! वहीं गोलियों की तड़तड़ाहट से उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता इस कदर जख्मी हुई कि नजदीकी अस्पताल जाते हुए रास्ते में ही दम तोड़ देती थी।

योगी सरकार में रामराज्य मय शासन की बात हो रही है तो उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के ऊपर हो रहे हमलों के बात की शुरुआत भगवान राम की नगरी अयोध्या में हुए जनसन्देश टाइम्स के पत्रकार पाटेश्वरी सिंह के ऊपर हुए हमले से होनी चाहिए। इसी वर्ष 30 जून को पत्रकार पाटेश्वरी सिंह जब बाइक से अपने घर को लौट रहे थे तो उसी समय पीछे से आ रही काले रंग कि सफारी ने पहले तो उनके बाइक को टक्कर मारी और जब वह गिर गए तब उस सफारी से बाहर निकल बदमाशो ने पत्रकार पाटेश्वरी के ऊपर लोहे कि रॉड और लाठी-डण्डों से हमला कर अधमरा कर दिया।

अस्पताल ले जाए जाने और ईलाज के उपरान्त पत्रकार पाटेश्वरी सिंह ने इसका सीधा आरोप योगी आदित्यनाथ के विधायक खब्बू तिवारी पर लगाया। वही मामला शासन के विधायक से जुड़े होने के कारण पुलिस भी असंवेदनशील रवैया अपनाने को विवश थी।

इसी तरह अक्टूबर 2020 में सूबे की राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर थाना अन्तर्गत अम्बेडकर पार्क चौराहे पर स्थित पुलिस चौकी से महज 20 कदम की दूरी पर एक खबर को कवरेज कर रहे पत्रकार नितिन के ऊपर आधा दर्जन बदमाशों ने लाठी-डण्डों से हमला कर दिया। उस प्रकरण में भी योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने लीपापोती करने में कोई कसर बाकी नही छोड़ी।

19 जून 2020 को उन्नाव जिले के लखनऊ-कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की हत्या से एक ओर जहाँ सम्पूर्ण उन्नाव सहित आस-पास के जिलों के पत्रकारों में दहशत और असुरक्षा का माहौल फैल गया! वहीं उसी वर्ष जुलाई में अपनी भांजी के साथ हो रहे छेड़खानी का विरोध करने पर गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी को हौसला बुलन्द अपराधियों ने गोलियों से छलनी कर उत्तर प्रदेश सरकार को खुली चुनौती देने का काम किया था।

उत्तर प्रदेश की रामराज्य स्वरूप योगी सरकार पत्रकारों के सुरक्षा और संरक्षा के चाहे जितने भी दावे कर ले लेकिन अपराधियों के बुलन्द हौसलों से उत्तर प्रदेश के पत्रकारों और पत्रकारिता पर जो खतरों के बादल छाए हुए हैं उसकी नाकामी की एक वजह योगी आदित्यनाथ सरकार की शासनिक नेतृत्व क्षमताओं में कमी और दुर्व्यवस्था व उदासीनता से घिरी प्रशासनिक कार्यविधि भी है।

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