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‘सांस थमती गई नब्ज जमती गईफिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दियाकट गये सर हमारे तो कुछ गम नहींसर हिमालय का हमने न झुकने दिया …’ कुछ ऐसा ही नजारा था आज से 23 साल पहले जब हमारी धरती पर
‘सांस थमती गई नब्ज जमती गईफिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दियाकट गये सर हमारे तो कुछ गम नहींसर हिमालय का हमने न झुकने दिया …’ कुछ ऐसा ही नजारा था आज से 23 साल पहले जब हमारी धरती पर