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पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास पर पिछले चार दशक से नज़र रखने वाले एक दोस्त मुस्कुराकर कहने लगे कि अबरार-उल-हक़ होते तो कहते, ‘थोड़ा जिया सियासत नूँ दे देव इस्लामी टच…’ बातचीत का केंद्र क़ासिम सूरी थे जिन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ़ के हालिया मार्च