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शिमला, 25 सितंबर : ‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।’ मजरूह सुल्तानपुरी ने ये पंक्ति न जाने कितने साल पहले लिखी होगी, लेकिन यह शेर सार्थक साबित कर दिखाया है, हिमालयन इलाके