कृपा शंकर यादव
बाबा विश्वनाथ की धार्मिक नगरी काशी की लगभग एक लाख आबादी वाली उपनगरी व्यास काशी! जिसका वर्तमान नाम रामनगर है। जहाँ का राजघराना परिवार और रामलीला मेला आज भी विश्व पटल पर सुनहरे इतिहास की याद दिलाता है। यहाँ के लोगों में ऐसी भी मान्यताएं हैं कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का बचपन यहाँ के ऐतिहासिक पलों से ही सजा और सँवरा था। यहाँ की ऐतिहासिक धरोहर और मिट्टी के पौराणिक सभ्यता और संस्कृति से ही पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को सिद्धांतवादी और समता मूलक राजनीतिज्ञ होने का ज्ञान मिला था।
जिस राजनीतिक ज्ञान के सहारे वह गरीबी का चादर ओढ़े हुए भी कई पदों पर रहते हुए देश के प्रधानमंत्री पद तक का सफलतापूर्वक सफर तय कर सके थे। लेकिन आज वही रामनगर खेल, शिक्षा, स्वास्थ्य, पक्की सड़क युक्त गलियों के मामले में भ्रष्टाचार और शासनिक सहित प्रशासनिक उदासीनता का दंश झेल रहा है। पच्चीस वार्डो का यहाँ का नगर पालिका परिषद भी कभी बजट की कमी का हवाला देकर विकास से पल्ला झाड़ने में समझदारी दिखाता है तो कभी यहाँ के जनप्रतिनिधि अलग-अलग पार्टीवाद की विषम विचारधाराओ का घड़ियाली आंसू बहाने से पीछे नहीं हटते।
आज भी प्रभु नारायण राजकीय इण्टर कालेज का जर्जर छात्रावास और छात्रों का कालेज परिसर से बाहर किराए के मकानों में रहकर शिक्षा-दीक्षा पूरी करना वहाँ के छात्रों के मूलभूत सुविधाओं की कमी की प्रमाणिकता है। वही राधा किशोरी राजकीय बालिका इण्टर कालेज की लगभग सभी कक्षाओं की जर्जरता यहाँ पढ़ने वाली छात्राओं के लिए काल बनकर खड़ी रहती हैं।
बात लाल बहादुर शास्त्री की हो रही है तो उनके नाम से चल रहे लाल बहादुर शास्त्री चिकित्सालय में फल-फूल रहे व्यापक भ्रष्टाचार की भी बात होनी चाहिए। देश के पूर्व ईमानदार प्रधानमंत्री के नाम से चल रहे इस सरकारी अस्पताल में प्रतिदिन चन्दौली, मिर्जापुर सहित आस-पास के जिलों से हजारों मरीज निःशुल्क इलाज की आस में आते तो हैं लेकिन डॉक्टरों द्वारा बाहर से लिखी जाने वाली दवाओं सहित अन्य व्यवस्थाओ और व्यवहारों से स्वयं को असहज और ठगा हुआ महसूस कर निराशा के साथ घरों अथवा अन्य अस्पतालों की ओर चल पड़ते हैं।
बात रामनगर के पंचवटी सड़क मार्ग पर पड़ने राजकीय पशु चिकित्सालय की करें तो वहाँ कि स्थिति देख ऐसा लगता है जैसे वह अस्पताल ही वेंटिलेटर पर चल रहा हो। वहीं पड़ाव-रामनगर सड़क मार्ग पर सन 1921 में लार्ड रीडिंग द्वारा स्थापित रामनगर का एक मात्र शहीद स्मारक जो आज भी रामनगर के पच्चीसों वार्डों सहित कटेसर, सेमरा, नाथुपुर, सुल्तानपुर, भीटी, गौरेया, कबीरपुर व अन्य गांवों के लोगों में शहीदों की शौर्य गाथा के लिए प्रचलित है। आज यहाँ की चटकी शिलापट्टिकाएं शहीदों के प्रति योगी आदित्यनाथ के राज्य सरकार सहित भारत सरकार के देश भक्ति और देश प्रेम के दावों की पोल खोल कर रख देतें हैं।
देश के लाल बहादुर शास्त्री के नाम से सुविख्यात यहाँ का एक मात्र ऐतिहासिक बलुआघाट जहाँ धार्मिक नहानो पर सैकड़ों, हजारों नही बल्कि लाखों लोग शामिल होते हैं। दुर्भाग्यवश वह घाट आज भी अपनी बदनसीबी और दुर्दशा का रोना रो रहा है। साल दर साल दरकती हुई इस घाट की सुध वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल में जरूर लिया था
और राजनारायण के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस घाट को पक्का कराने हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिवाल्विंग फण्ड से दो करोड़ उन्नतीस लाख की धनराशि भी उपलब्ध कराया था। लेकिन समय के उस दौर में वन विभाग ने कछुआ सेंचुरी का हवाला देते हुए लाल बहादुर शास्त्री अर्थात बलुआ घाट को पक्का कराए जाने के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सपनो के साकार होने पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए ईस घाट के पक्का होने की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।
वर्तमान भारत सरकार सहित उत्तर प्रदेश सरकार के विकास के नारों की समीक्षा के साथ बेहतर उदाहरण अगर आम जनमानस को देखना हो तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की इस गृहनगरी रामनगर को अवश्य देख, बतातें चलें कि वर्ष 2014 से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र व वर्ष 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिल में विशेष महत्व रखने वाले काशी के इस रामनगर में आज तक विकास और बदलाव की गंगा नही बही। भारत सरकार सहित उत्तर प्रदेश सरकार के दरबार से निकलने वाली योजनाएं यहाँ तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देतीं हैं।