लखनऊ,यूपी-समाचार10 India। रजनीगंधा द्वारा प्रस्तुत 13वें जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) ने लखनऊ और कानपुर में दो शानदार आयोजनों के साथ सार्थक सिनेमा का जश्न मनाने के अपने विज़न को आगे बढ़ाया। इस फेस्टिवल ने एक बार फिर सिनेमा प्रेमियों, फिल्म निर्माताओं और परिवारों को एकजुट किया और ऐसी कहानियाँ दिखाईं जो साहस, संस्कृति और समुदाय की भावना को दर्शाती हैं। लखनऊ चैप्टर का उद्घाटन फन सिनेमा, फन रिपब्लिक मॉल में हुआ, जहां उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशक विशाल सिंह ने फिल्म ‘जनावर’ के निर्देशक शचिंद्र वत्स, अभिनेताओं भुवन अरोड़ा और विजय विक्रम सिंह, साथ ही दैनिक जागरण और रजनीगंधा के वरिष्ठ प्रतिनिधियों के साथ दीप प्रज्ज्वलन किया।
स्क्रीनिंग में सुभाष कपूर की ‘जॉली एलएलबी 3’ शामिल थी, जिसने अपनी मजेदार कोर्टरूम कॉमेडी से दर्शकों को खूब हंसाया। इसमें ‘मेहता एंड कंपनी’, ‘नानी’, ‘रूटलेस’, और ‘पापा की पिक्चर’ जैसी भावनात्मक लघु फिल्में भी दिखाई गईं। लखनऊ में एक खास आकर्षण अभिनेता ताहिर राज भसीन का प्रेरणादायक और विचारपूर्ण सत्र था, जिसमें उन्होंने अपनी यात्रा के बारे में बात की और इस बात पर जोर दिया कि असली सफलता चेहरे के बजाय किरदार के रूप में पहचाने जाने में है। उन्होंने युवा अभिनेताओं को अनुशासन में रहने, लगातार अभ्यास करने और फौरी लोकप्रियता के बजाय सार्थक कहानियों पर ध्यान देने की सलाह दी। ‘जनावर’ को प्रमोट करने के लिए फेस्टिवल में शामिल हुए अभिनेता भुवन अरोड़ा ने कहा, “जेएफएफ जैसे फेस्टिवल इसलिए खास हैं क्योंकि ये हमें उन लोगों के करीब लाते हैं जिनके लिए हम रचनाएँ करते हैं। दर्शकों के साथ बैठकर उनकी हँसी सुनना या उनकी खामोशी महसूस करना किसी भी अभिनेता के लिए अनमोल पुरस्कार है। मैं इस यात्रा का हिस्सा बनकर आभारी हूँ, जहाँ हमारी संस्कृति से जुड़ी कहानियाँ सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचती हैं।”
महत्वाकांक्षी अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं को संबोधित करते हुए, अभिनेता ताहिर राज भसीन ने कहा, “यदि एक अप्रशिक्षित अभिनेता कोई सीन करता है, तो वह कभी-कभी अच्छा लग सकता है। लेकिन एक प्रशिक्षित अभिनेता के पास उसी सीन को 25 अलग-अलग तरीकों से करने की क्षमता होती है और वह सबसे अच्छा तरीका चुनता है। इसलिए, जीवन में आपको सिर्फ अच्छे की नहीं, बल्कि महान बनने की ओर बढ़ना चाहिए। एक क्रिएटिव एंटरप्रेन्योर बनने की कोशिश करें, इससे आपको एक कंपनी के सीईओ जैसा अनुभव मिलेगा।” कानपुर में, फेस्टिवल का उद्घाटन 19 सितंबर को रेव-3 मॉल, एवी सिनेमा ऑडी में हुआ। इसका उद्घाटन संयुक्त पुलिस आयुक्त आशुतोष कुमार, जिला मजिस्ट्रेट श्री जितेंद्र प्रताप सिंह, और रजनीगंधा के रितेश गुप्ता तथा दैनिक जागरण के ग्रुप डायरेक्टर सुनील गुप्ता जैसी जानीमानी हस्तियों ने भाग लिया। तीन दिनों तक, कानपुर के दर्शकों ने ‘जॉली एलएलबी 3’ से लेकर विवेक अग्निहोत्री की ‘द बंगाल फाइल्स’ तक कई प्रभावशाली फिल्में देखीं।
निर्देशक और अभिनेता दर्शन कुमार को दर्शकों के साथ बातचीत के दौरान स्टैंडिंग ओवेशन भी मिला। इस चैप्टर में जेएफएफ लिटिल लाइट भी था, जो युवा आवाजों का उत्सव था, जहाँ बच्चों और माता-पिता ने ‘बाइसिकिल डेज़’ जैसी फिल्मों का आनंद लिया। अन्य मुख्य आकर्षणों में ‘फुले’, ‘रुबरु’, ‘मंडी हाउस का मेंटल’, और ‘माई आर्मेनियन फैंटम’ जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्में शामिल थीं। मास्टरक्लासेस और बातचीत ने अनुभव को और बेहतर बना दिया, जिसमें 3D कलाकार दीपक पंत ने सिनेमा में एआई और वीएफएक्स पर सत्र आयोजित किया, अभिनेता यशपाल शर्मा और निर्देशक इरफान खान के साथ रोचक बातचीत हुई, और बिग बॉस के प्रतिष्ठित नैरेटर विजय विक्रम सिंह ने प्रेरणादायक संबोधन दिया। बसंत राठौड़, सीनियर वीपी- स्ट्रैटेजी एंड बिजनेस डेवलपमेंट, जागरण प्रकाशन लिमिटेड, ने कहा, “बेहतरीन सिनेमा सिर्फ कहानियाँ सुनाने का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज और संस्कृति से गहरा संवाद करता है।
जागरण फिल्म फेस्टिवल का हर संस्करण इस संवाद को और व्यापक बनाने की कोशिश करता है, ताकि यह बड़े शहरों से निकलकर भारत के हर कोने तक पहुँचे। लखनऊ और कानपुर में दर्शकों का उत्साह दिखाता है कि लोग ऐसी कहानियों से जुड़ना चाहते हैं जो सोच को चुनौती दें, भावनाएँ जगाएँ और हमारी संस्कृति को नया आयाम दें। जेएफएफ न सिर्फ फिल्मों का मंच है, बल्कि एक ऐसी जगह है जहाँ विचार, पहचान और सपने एक साथ आते हैं।” खचाखच ऑडिटोरियम, तालियों की गड़गड़ाहट और दर्शकों की दिल को छूने वाली प्रतिक्रियाओं के साथ, जागरण फिल्म फेस्टिवल 2025 के लखनऊ और कानपुर आयोजनों ने सांस्कृतिक उत्सव के रूप में अपनी जगह फिर से बनाई, जहाँ सिनेमा को सिर्फ देखा नहीं जाता, बल्कि उसे गहराई से महसूस भी किया जाता है। जागरण फिल्म फेस्टिवल के विषय में जेएफएफ केवल एक फेस्टिवल नहीं, बल्कि एक ऐसी यात्रा है जो सिनेमा को जन-जन तक पहुँचाती है। शहरों में स्क्रीनिंग, वर्कशॉप और संवाद सत्रों के माध्यम से यह ऐसी जगह बनाता है जहाँ दर्शक उन कहानियों से मिलते हैं जो क्रेडिट्स खत्म होने के बाद भी उनके साथ रहती हैं।